छठ पूजा
🌞 भूमिका
भारत त्योहारों का देश है, जहाँ हर पर्व का एक विशिष्ट आध्यात्मिक और सांस्कृतिक महत्व होता है। इन्हीं पावन पर्वों में से एक है छठ पूजा, जो मुख्य रूप से बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश और नेपाल के तराई क्षेत्रों में अत्यंत श्रद्धा और भक्ति के साथ मनाई जाती है। यह त्योहार सूर्य देव और उनकी पत्नी ऊषा (छठी मइया) को समर्पित होता है। छठ पूजा चार दिनों तक चलने वाला त्योहार है, जिसमें कठोर व्रत, शुद्धता और अनुशासन का विशेष महत्व होता है।
☀️ छठ पूजा का इतिहास और पौराणिक महत्व
छठ पूजा का उल्लेख कई प्राचीन ग्रंथों और पुराणों में मिलता है। कहा जाता है कि इस पर्व की शुरुआत त्रेतायुग में हुई थी। भगवान श्रीराम के अयोध्या लौटने के बाद जब उन्होंने राज्याभिषेक किया, तब माता सीता ने कार्तिक शुक्ल षष्ठी के दिन सूर्यदेव की उपासना की थी। इसी परंपरा को आगे चलकर छठ पूजा के रूप में मनाया जाने लगा।
एक अन्य कथा के अनुसार, महाभारत काल में कुंती और द्रौपदी ने भी सूर्य देव की पूजा की थी। कहा जाता है कि सूर्यदेव ने पांडवों को कठिन समय में ऊर्जा और शक्ति प्रदान की थी। इसलिए यह पूजा न केवल धार्मिक बल्कि ऊर्जा, स्वास्थ्य और जीवन के प्रति आभार व्यक्त करने का प्रतीक भी है।
🌸 छठ मइया और सूर्य देव की पूजा का महत्व
छठ पूजा में सूर्य देव की पूजा का विशेष महत्व है क्योंकि सूर्य को साक्षात जीवनदाता माना गया है। पृथ्वी पर सभी जीवों की ऊर्जा का स्रोत सूर्य ही है। इस पूजा के माध्यम से भक्त सूर्य देव से अपने जीवन में स्वास्थ्य, समृद्धि और परिवार की खुशहाली की कामना करते हैं।
सूर्य की पत्नी ऊषा को ‘छठ मइया’ कहा जाता है, जिनकी आराधना भोर के समय की जाती है। छठ मइया को संतान की रक्षा करने वाली, सुख-समृद्धि देने वाली और मनोकामनाएँ पूर्ण करने वाली देवी माना जाता है।
🪔 छठ पूजा की अवधि और विधि (चार दिन का व्रत)
छठ पूजा चार दिनों तक चलती है, और प्रत्येक दिन का अपना विशिष्ट महत्व होता है —
1. नहाय-खाय (पहला दिन)
पहले दिन व्रती (व्रत रखने वाला व्यक्ति) स्नान करके शुद्ध आचरण की शुरुआत करता है। इस दिन घर की सफाई की जाती है और शुद्ध भोजन बनाया जाता है। भोजन में चना दाल, कद्दू की सब्जी और चावल का उपयोग होता है। व्रती केवल एक बार भोजन करता है और व्रत की पवित्रता का संकल्प लेता है।
2. खरना (दूसरा दिन)
दूसरे दिन को खरना कहा जाता है। इस दिन पूरा दिन उपवास रखा जाता है और शाम को सूर्यास्त के बाद प्रसाद बनाकर पूजा की जाती है। प्रसाद में गन्ने के रस या गुड़ से बनी खीर, रोटी और फल होते हैं। खरना का प्रसाद बाँटने के बाद व्रती अगले 36 घंटे का निर्जला उपवास आरंभ करता है।
3. संध्या अर्घ्य (तीसरा दिन)
तीसरे दिन व्रती नदी, तालाब या घाट पर जाकर सूर्यास्त के समय सूर्य देव को अर्घ्य देता है। महिलाएँ गीत गाती हैं और दीपक जलाकर सूर्यदेव को प्रणाम करती हैं। यह दृश्य अत्यंत मनमोहक होता है—पूरा घाट दीपों की रौशनी से जगमगाता है और वातावरण में श्रद्धा की भावना भर जाती है।
4. उषा अर्घ्य (चौथा दिन)
अंतिम दिन प्रातःकाल सूर्योदय से पहले ही व्रती घाट पर पहुँचते हैं और उगते हुए सूर्य को अर्घ्य देते हैं। इस समय भक्त सूर्य देव से अपने परिवार की सुख-शांति, संतान की दीर्घायु और जीवन में समृद्धि की कामना करते हैं। अर्घ्य देने के बाद व्रती जल पीकर व्रत का समापन करते हैं। इसे पारण कहा जाता है।
🌾 छठ पूजा के विशेष प्रसाद और भोग
छठ पूजा में शुद्धता और सात्त्विकता का विशेष ध्यान रखा जाता है। पूजा में प्रयोग होने वाले सभी प्रसाद शुद्ध घी, गुड़, गन्ना, ठेकुआ, चावल, नारियल, केला और मौसमी फलों से बनाए जाते हैं। ठेकुआ को छठ पूजा का प्रमुख प्रसाद माना जाता है, जिसे गेहूँ के आटे, गुड़ और घी से बनाया जाता है।
🌊 घाटों की पवित्रता और सामूहिकता का प्रतीक
छठ पूजा केवल व्यक्तिगत पूजा नहीं, बल्कि सामाजिक एकता और सहयोग का भी प्रतीक है। लोग मिलकर घाटों की सफाई करते हैं, सजावट करते हैं और सुरक्षा का ध्यान रखते हैं। गाँवों और शहरों में यह पर्व सामूहिक रूप से मनाया जाता है, जिससे समाज में एकता और भाईचारे की भावना मजबूत होती है।
🌼 वैज्ञानिक दृष्टिकोण से छठ पूजा का महत्व
छठ पूजा केवल धार्मिक दृष्टि से ही नहीं, बल्कि वैज्ञानिक रूप से भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। इस समय सूर्य की किरणों में ऊर्जा और जीवनदायिनी शक्ति का प्रभाव अधिक होता है। जब लोग जल में खड़े होकर सूर्य को अर्घ्य देते हैं, तो शरीर पर सूर्य की किरणों का सीधा प्रभाव पड़ता है, जिससे शरीर में विटामिन D की मात्रा बढ़ती है और मन-शरीर शुद्ध होता है।
इसके अलावा, व्रत के दौरान आत्मसंयम और शुद्ध भोजन लेने से शरीर का विषहरण होता है और मन में एकाग्रता आती है।
🕉️ छठ पूजा के गीत और लोक संस्कृति
छठ पूजा के अवसर पर गाए जाने वाले लोकगीत इसकी आत्मा माने जाते हैं। जैसे —
“केलवा के पात पर उगेलन सूरज देव…”
“छठी मइया के गीत गाइब…”
ये गीत केवल पूजा का हिस्सा नहीं, बल्कि भावनाओं का माध्यम हैं। इन गीतों में माँ-बेटी का स्नेह, संतान के लिए ममता और प्रकृति के प्रति कृतज्ञता झलकती है।
🌺 निष्कर्ष
छठ पूजा केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि यह आस्था, शुद्धता, अनुशासन और पर्यावरण के सम्मान का उत्सव है। यह पर्व हमें सिखाता है कि मनुष्य और प्रकृति के बीच गहरा संबंध है। जब हम सूर्य, जल और पृथ्वी का सम्मान करते हैं, तभी हमारा जीवन संतुलित और समृद्ध बनता है।
छठ पूजा नारी शक्ति, मातृत्व और भक्ति की गहराई का प्रतीक है। इस पर्व की पवित्रता, अनुशासन और सामूहिकता हमें यह सिखाती है कि सच्ची भक्ति वही है जो निस्वार्थ और समर्पित हो।
इस प्रकार, छठ पूजा भारतीय संस्कृति की आत्मा को दर्शाने वाला एक अद्भुत पर्व है — जहाँ सूर्य की ऊर्जा, माँ की ममता और मनुष्य की श्रद्धा मिलकर जीवन को आलोकित करते हैं। 🌞🙏

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