✍️ विषय: "मैं कौन हूँ?" – एक आंतरिक यात्रा
नमस्कार साथियों,
आज मैं आपके सामने एक ऐसा प्रश्न लेकर खड़ा हूँ, जिसका उत्तर शायद हम सब ढूंढ़ रहे हैं, लेकिन शब्दों में ठीक से व्यक्त नहीं कर पा रहे — "मैं कौन हूँ?"
यह प्रश्न साधारण नहीं है। यह कोई बायोडाटा, पहचान पत्र या परिचय पत्र भर नहीं है। यह सवाल हमारे अस्तित्व, हमारी आत्मा, हमारे जीवन के उद्देश्य से जुड़ा हुआ है।
🔍 हम खुद को कैसे पहचानते हैं?
जब कोई पूछता है "तुम कौन हो?"
तो हम जवाब देते हैं –
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“मैं एक शिक्षक हूँ”
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“मैं एक विद्यार्थी हूँ”
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“मैं डॉक्टर हूँ”
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“मैं राम का बेटा हूँ”
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“मैं भारत का नागरिक हूँ”
पर क्या यही हमारी पहचान है?
नहीं। ये तो केवल भूमिकाएं (roles) हैं, जो जीवन में समय-समय पर बदलती रहती हैं।
वास्तव में, मैं कौन हूँ?
🌱 बचपन से पहचान बनती रही... लेकिन आत्म-चिंतन खो गया
जब हम छोटे थे, हमें बताया गया:
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तुम लड़का हो या लड़की
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तुम इस धर्म के हो
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तुम इस जाति, इस देश, इस भाषा से हो
धीरे-धीरे हमने अपनी पहचान को उन बाहरी लेबल्स में ढाल लिया।
हमने दूसरों की आंखों से खुद को देखना सीख लिया,
लेकिन खुद के अंदर झांकना बंद कर दिया।
🧘♂️ "मैं" का सही अर्थ क्या है?
"मैं" कोई नाम, शरीर, जाति, धर्म, पेशा नहीं है।
"मैं" वो चेतना हूँ जो सब कुछ अनुभव करती है।
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मैं शरीर नहीं हूँ – शरीर तो बदलता है
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मैं मन नहीं हूँ – मन तो विचारों से भरा है
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मैं नाम नहीं हूँ – नाम तो किसी और ने दिया है
"मैं" वह हूँ जो इन सबसे परे है – जो सबका साक्षी है।
🧠 तो फिर यह सवाल क्यों ज़रूरी है?
"मैं कौन हूँ?" का उत्तर खोजे बिना:
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हम जीवन को उद्देश्यहीन जीते हैं
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हम दूसरों की अपेक्षाओं में उलझे रहते हैं
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हम डर, चिंता, और असुरक्षा में फंसे रहते हैं
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हम कभी आत्म-शांति महसूस नहीं करते
जब हम यह जान लेते हैं कि हम कौन हैं,
तब हमें कोई हिला नहीं सकता, गिरा नहीं सकता।
हमारा आत्मबल अटूट हो जाता है।
📿 धार्मिक और आध्यात्मिक दृष्टिकोण से:
🕉️ उपनिषद कहता है:
“अहं ब्रह्मास्मि” – मैं ब्रह्म हूँ
यानी मैं वही अनंत शक्ति हूँ जो इस सृष्टि को चलाती है।
🙏 श्रीकृष्ण गीता में कहते हैं:
“ना मैं जन्म लेता हूँ, ना मरता हूँ। मैं नित्य हूँ।”
यह आत्मा कभी नष्ट नहीं होती, यह न तो जलती है, न कटती है।
यही मेरा सच्चा स्वरूप है — आत्मा, शुद्ध चेतना।
💡 जब हमें अपनी पहचान मिल जाती है:
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हम डरना छोड़ देते हैं
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हम दिखावा करना बंद कर देते हैं
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हम दूसरे को गिराकर खुद को ऊँचा दिखाना बंद कर देते हैं
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हमारा जीवन सरल, स्पष्ट और उद्देश्यपूर्ण हो जाता है
🧭 मैं कौन हूँ? – जानने के 5 रास्ते
1. ध्यान (Meditation):
रोज़ 10-15 मिनट खुद के साथ बैठें।
अपने विचारों, भावनाओं को देखें – लेकिन उनसे जुड़ें नहीं।
2. स्व-प्रश्न पूछना (Self-Inquiry):
जब भी कोई भावनात्मक स्थिति आए, पूछें:
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"ये जो क्रोध आया, क्या वो मैं हूँ?"
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"ये डर, क्या मेरी पहचान है?"
उत्तर अंदर से मिलेगा – नहीं, ये सिर्फ अनुभव हैं।
3. लिखना (Journaling):
"मैं कौन हूँ?" इस विषय पर रोज़ 5 मिनट लिखें।
हर दिन आपको थोड़ा और स्पष्टता मिलेगी।
4. सत्संग और ज्ञानवाणी सुनना:
संतों, महापुरुषों और आत्मज्ञानियों की वाणी सुनना
मन को शुद्ध करता है और दिशा दिखाता है।
5. प्रकृति के साथ समय बिताना:
जब हम पेड़, आकाश, पक्षियों को देखते हैं –
तब हम अपने अंदर की मौलिक शांति से जुड़ते हैं।
🌊 मैं बहता हुआ जल नहीं हूँ, मैं शांत झील हूँ
बाहर की दुनिया शोर मचाती है:
“बने कुछ, कर कुछ, दिखा कुछ!”
लेकिन भीतर की आवाज़ कहती है:
“पहले जानो, तुम हो कौन?”
जब हम "होने" को पहचानते हैं, तभी "करने" का अर्थ मिलता है।
वरना हम जीवनभर बस दौड़ते रहते हैं, और अंत में पूछते हैं:
"क्या यही सब था?"
🎯 निष्कर्ष (Conclusion):
“मैं कौन हूँ?” – यह प्रश्न केवल दर्शन नहीं है,
यह जीवन की सच्ची शुरुआत है।
जब आप जान जाते हैं कि आप शरीर नहीं, आत्मा हैं –
तो आप दूसरों को भी आत्मा के रूप में देखने लगते हैं।
फिर नफरत नहीं होती, ईर्ष्या नहीं होती, डर नहीं होता।
"जिस दिन तुम खुद को पहचान लेते हो, उसी दिन तुम्हारा पुनर्जन्म होता है।"
तो आइए, आज से इस प्रश्न को अपने जीवन का साथी बनाएं –
हर दिन खुद से पूछें – "मैं कौन हूँ?"
उत्तर भीतर से आएगा – शांति, प्रेम और सत्य के रूप में।
धन्यवाद!
🙏
– लाइफ कोच अनुज
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